तुम कहती हो तो मैं मान लेता हूँ हाँ मैं हूँ लापरवाह , और सच ही तो तुम कहती हो , क्यूँ ना बनूँ मैं लापरवाह आखिर मैं जानता हूँ की तुम हो मेरी परवाह करने को, तुम्हारी इतनी मोह्हबत मुझे लापरवाह बना देती है ये जो तुम बात बात पे मुझे डांटती हो ना वो आदत मुझे लापरवाह बना देती है, मुझे मेरी ये आदत अच्छी लगती है क्योकि तुम मेरे और करीब आ जाती हो मुझे डांटती हो समझाती हो, मुझे बताती हो हर एक चीज़ सिखाती हो , मुझे पता है तुम्हे मेरी ये आदत अच्छी नहीं लगती वादा करता हूँ बदल लूंगा पर तब जब तुम मेरे पास आ जाओगी ,
अभी ऐसे ही रहने दो पर अब तुम कुछ बदल रही हो तुम्हारी आदते मेरी आदतों से अलग हो रही है शायद तुम मुझसे दूर जा रही हो वजह मैं ही हूँ मुझे पता है पर तुम तो समझ सकती हो क्यों आज मेरी हर बात तुम्हे बुरी लगने लगी क्यों मेरी आवाज तुम्हे सुई सी चुभने लगी क्यों मेरा प्यार तुम्हे ज़हर लगता है, क्या अब मैं बुरा हो गया हूँ तुम्हारे लिए या फिर अब मैं अच्छा नहीं लगता ।
तुम्हारा दूर जाना मेरे आँखों से बरसात की वजह बनती है ये तुम भी जानती हो पर फिर भी तुम्हे ये मौसम अच्छा लगता है, और हर रोज बरसते हैं ये, तुम तो कहती थी की नहीं रह पाओगी एक पल भी मेरे बिना तो आज क्यों इतनी दूर हो रही हो की मेरी आवाज भी तुम तक ना पहुचँ पाये । ना जाओ इतनी दूर , तुमने मुझे नयी ज़िन्दगी दी है मैं कर्ज़दार हूँ उस एहसान का मुझे वो एहसान चुकाने दो तम्हारी ज़िन्दगी को खूबसूरत बनाने दो वापस आ जाओ मेरे उतना पास की साँसे हमारी आपस में टकराने लगे और जिंदगी फिर से उन हसीं लम्हो की तारीख लिखने लगे जिसका ख्वाब हम दोनों ने मिलकर देखा है,
मैं तुमसे प्यार बहुत करता हूँ और इस प्यार के लिए अगर मैं मर भी जाऊ तो मुझे गम नहीं और फिर भी तुम कहती हो की मैं लापरवाह हूँ तो हाँ मैं हूँ लापरवाह ।।
तेरे आगोश में दम तोड़ गई कितनी हसरतें, फिर किसने तेरा नाम मोहब्बत रख दिया... प्यार... कभी महसूस किया है.....? अपने आप को खो कर सबकुछ पाने का अहसास ? यह सिर्फ एक कहानी नहीं बल्कि ज़िंदग़ी की वो सच्चाई है जिसे जानते हुए भी हम अनजान बने रहते हैं। आखिर क्यों मिलने से पहले जो प्यार ज़िंदग़ी के लिए ज़रूरत लगता है मिलने के बाद वही प्यार उसी ज़िंदग़ी के लिए घुटन बन जाता है.. आखिर क्यों... कभी-कभी हकीकत और सपनों के बीच की दूरी का अहसास ही नहीं होता.. क्यों प्यार सिर्फ प्यार ना रह कर पागलपन बन जाता है... और फिर यही पागलपन ज़िंदग़ी के लिए ऐसी सज़ा जहां ना तो ज़ख़्मों की गिनती हो सकती है और ना ही दर्द का हिसाब। प्यार दोनों को बेशुमार था पर दुनिया के सामने ला पाना शायद दोनों को गवारा न हुआ , और आखिर वो रिश्ता कही गुमनामी में दब के दम घुट गया । उसे सोच के रोते रहना और किस्मत को गुनहगार कहना शायद ये मेरे लिए आसान था क्योंकि मैं ये मानना ही नहीं चाहता था कि मेरी भी कोई गलती होगी मुझे मैं सही लग रहा था , उसकी परवाह किए बगैर आखिर जब उसकी शादी का दिन नजदीक आ गया । तब मेरे...
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