एक तुम्हे पाने की ख्वाहिस पूरी नहीं हुयी, लाख चाहा तो भी दुरी ना हुयी, तुम्हारा छोड़ जाना भी लाज़मी था क्योकि मोह्हबत में सब गवारा था, बस हमसे जी हुजूरी नहीं हुयी | हर रोज रुलाती है इस लड़की में अक्ल नहीं है मोह्हबत हो ही गयी है तो इसका कोई हल नहीं है कहती हैं कि 365 घूमते हैं मेरे आगे पीछे अब कौन समझाए उन्हें कि इतनी खूबसूरत उनकी शक्ल भी नहीं है कहती है कि फरेब वाले काम मैंने किये नहीं ये कहते वक़्त तुम जरा भी डरी नहीं तुम्हारे बिन जी नहीं सकती, ये कहती थी तुम, हिज्र को अरसा हो गया, सुना है तुम अब तक मरी नहीं एक नया मोड़ हम दोनों की कहानी में है हम दोनों के मिज़ाज़ बड़ी रवानी में हैं चलो तुम सही मैं गलत, ये बात यही पर ख़त्म करते है, वो तो वक़्त बताऐगा कि कौन कितने पानी में है आपसी गुफ्तगू को मोह्हल्ले में सजी अदालत बता रही हो तुम पढ़ी लिखी हो मोह्हबत में वकालत बता रही हो बात करती हो जिंदगी भर साथ देने कि, तुम तो दो कदम साथ चलने को जलालत बता रही हो मेरी सुनने और अपनी सुनाने से क्या होगा अब बेगुनाही के सबूत दिखाने से क्या होगा हिज़्र का फैसला लिया था तुमने ग...
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