ये दिल हमारी समझ से बिल्कुल ही परे हैं
समझ नही आता जख्म भरे हैं कि हरे हैं
ये सोचकर कि मिल जायेगा खरीदार इसका
लिये अपने दिल को बाजार में खडे हैं
हो जायेगी मरम्मत तेरे छुने से इनकी
जो पत्थर मेरी कब्र के उखडे पडे है
भला आखिर कैसे भरते दिल के घाव मेरे
जख्म भी तो हमारे बहोत गहरे हैं
जिन्दगी साहिल की तरहा हैं यारो
कभी तो खामोश बहता पानी कभी उठती तेज लहरे हैं
Comments
Post a Comment