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तुम्हारा जवाब- तुम अक्सर पूछती थी की मैं क्या हूँ , तो सुनो

हां, मैं थोड़ा झूठा सा हूं…
क्योंकि अन्दर से टूटकर भी, चेहरे पर मुस्कुराहट रखता हूं..लाखों सवाल होकर भी, चुपचाप सबकी सुनता रहता हूं…अपने अधूरे लम्हों को पूरा करने की कोशिश में, खुद को मारता रहता हूं…कभी खास रहे अपने लोगों को, पहचानने से इंकार करता हूं..

हां,  मैं थोड़ा पागल सा हूं…
क्योंकि बेवफाई का एहसास होकर भी, बेइंतहा मोहब्बत किए जा रहा हूं बिना किसी मकसद के, एक ही साये के पीछे भाग रहा हूं…जो कभी था ही नहीं, उसके लिए आंसू बहा रहा हूं…जो मुझे ठीक से जानता भी नहीं, उसके लिए अपनी रातें बर्बाद कर रहा हूं…

हां,मैं थोड़ा सरफिरा सा हूं…
क्योंकि, पल भर की मुलाकात में, बस चुपचाप खड़ा होकर उसे घूर रहा हूं…अकेले मैदान में, अपने ही खेल में, खुद को धोखा दे रहा हूं…अपनी हसरतों का धुआं मिटाकर, बीते समय को वापस लाने की कोशिश कर रहा हूं…बिना किसी गलती के, खुद को सजा दिए जा रहा हूं…

फिर भी, मैं अपनी उम्मीदों को फिर से जगा रहा हूं..उसको फिर से साथ चलने को कह रहा हूं….एक अधूरे ख्वाब को पूरा करने की कोशिश में लगा हूं…ठीक वैसे, जैसे अमावस्या की रात में चांद को ढूंढ रहा हूं…!!

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